Friday, September 11, 2015

हकीकत न दिखाओ मर जाऊंगा।

 





















यकीनन ख़ाक सहराओं की तूने उड़ा रक्खी होगी,
मेरी तन्हाई ऐसे किसी तिनके की मोहताज़ नहीं।
---सूफी ध्यान श्री

मुद्दतोँ बाद ख्वाब आँखों से ओझल हुए हैं यारों
ज़माने की हकीकत न दिखाओ मर जाऊंगा।
-----सूफ़ी ध्यान श्री

बड़ी मुश्किल से नींद से जागा हूँ यारों
ख्वाब न दिखाओ फिर से सो जाऊँगा।
.........सूफ़ी ध्यान श्री

भला क्योंकर न हो,
उन्हें उजालों से परहेज
जो रात के साये में जीते हैं।
कुछ अजीब हैं शख्स वे
जो गिरवी रखकर इमान,...
मर्यादा के मुखौटे में जीते हैं।
----सूफ़ी ध्यान श्री

फ़साने ही फ़साने हो जहाँ हरेक फ़साने पे।
फिर मुश्किल है जुगल बंदी वहाँ जुबानों पे।। ----सूफी ध्यान

खो जाए वजूद फिर वो अपना क्या?
जुड़ा रहे खुदी से फिर उसका क्या?
अपने वजूद की दुनिया बस इतनी है,
पानी पर पानी लिखनी जितनी है।
----सूफी ध्यान श्री

क्योंकर ख्वाब आये पलकों की दहलीज पर,
जब आँखों की नींद तक चुरा गया है कोई।
हर वक़्त ढूढ़ता रहता हूँ खुद को, खोकर उसमे
जब से पराया कह कर अपना बना गया है कोई।।
-----सूफी ध्यान श्री

Monday, August 17, 2015

खुद का भ्रम बहुत है

खुद का भ्रम बहुत है ख़ुदा के होने के लिए।
ख़ुदा का भ्रम पैदा न कर खुद के होने के लिए।
............अनिल कुमार 'अलीन'.............

 

Sunday, August 9, 2015

तुम्हारी रचनाएँ तुम्हारी ही तरह झूठी है

गर लाइक करते हो कि मैं भी करूँगा एक दिन,
फिर तो थक जाओगे एक दिन यूँ ही करते-करते।

तुम्हारे जिन्दा होने की सबब गर कुछ हो तो लू
कमबख्त यहाँ साँस भी लेते हो तो डरते-डरते।

वक्त रहते बंद करो साहित्य में खुद को गिराना
वरना मर जाओगे एक दिन यूँ ही मरते-मरते ।

लाख ढक के रखो मर्यादा में इस गंदगी को  तुम
ऊब जाओगे एक दिन खुद से इसे करते-करते।

तुम्हारी रचनाएँ तुम्हारी ही तरह झूठी है अलीन
कीड़े पड़ जायेंगे इसमें विचारों के ठहरते-ठहरते।
                                                                                       ……अनिल कुमार 'अलीन'……  

Thursday, August 6, 2015

मसीहा मोहब्बत का

वीराने में,
ज़िन्दगी से थका,
हारा,
सो रहा था,
लम्बी नींद में,
वह मसीहा,

मोहब्ब्बत का ,
मोहब्बत में,
जाने किसके.

वह विराना,
जो गवाह है,
चंद चीखों
और सैकड़ों प्रहारों के,
जो पड़े थे कभी,
ख़ामोशी पे जिसके.

सर कुचलने वाले,
अपनी बदसलूकी
और बेरहमी पर,
सर झुकाए,
खड़े थे,
आगे जिसके,
गवाह थे,
बेगुनाह होने के उसके.

मोहब्बत का मसीहा

वह,

रात की ख़ामोशी,
जीने की चाह,
पर दर्द भरी आह,
आह,
जिसे सुनकर,
सितारे भी,
अश्क बहाए,
नभ के.

दुआएं,
लाखों लबों की,
कुबूल होती वहाँ,
जहाँ पड़ी,
एक अधूरी दुआ,
लब पे जिसके.

यक़ीनन,
जिंदगी से,
वो नहीं,
बल्कि जिंदगी,
हारी उससे,
अबतलक,
पूरी कायनात,
दोषी है जिसके

अनिल कुमार ‘अलीन’

Saturday, August 1, 2015

अदब बादलों की

 

 

 

 

 

यह अदब है बादलों की, तुझे भिगोने की 'अलीन'

बरसती बूंदों से खुद को छुपाने की गुस्ताखी न कर।

............अनिल कुमार 'अलीन'.............


शराब ऐसी हो कि चढ़कर न उतरे ता-उम्र।
उतर जाए समय के साथ फिर वो शराब नहीं।

............अनिल कुमार 'अलीन'.............

मृत्यु! एक अफवाह हैं

एक अफवाह हैं जिन्दों की फैलाई हुई।
मृत्यु एक झूठ है उसे सच का नाम न दो।
गर मुर्दों की अनुभूति है तो मुर्दे ही जाने
गैर के अनुभवों को कोई ऐसा नाम न दो।
जिन्दा हो गर तो बाते करो जिंदगी की ...
यहाँ मरे होने की खुद को इल्जाम न दो।
एक सच ढंग से बोला नहीं जाता तुमसे,
कम से कम यूँ झूठों को सरेआम न दो।
..........अनिल कुमार 'अलीन'...........


(चित्र गूगल इमेज साभार)

Friday, July 31, 2015

कश्ती एक जरिया


कश्तियों तक
खुद को न समेट ऐ मुसाफिर,
यह सफ़र है समन्दर का
और तेरी कश्ती एक जरिया।
और ऐसे सफ़र पर
साहिल की बात करना ...
एक बेईमानी है।

.....अनिल कुमार 'अलीन'

तालीम लेकर लोग बेकार बैठे हैं,
घर-घर में लोग बेरोजगार बैठे हैं,
शराफ़त की तन पर ओढ़े हुए चादर,
बड़ी आस लगाए होशियार बैठे हैं.
दूसरों की खबर नहीं अपनी गरज लिए,
अब शहर और गलियों में बेशुमार बैठे हैं,
काफिलो सी आज गुजरी है जिंदगी,
चौखट पे दस्तक दिए हजार बैठे हैं,
कहने को है बहुत पर कैसे कहे कोई,
गर्दन के ऊपर अब तो तलवार बैठे हैं,
एक बात तुमसे कहनी है हमको ‘अलीन’
एक अनार पर हजार बीमार बैठे हैं

……….०६/१२/२००४ अनिल कुमार ‘अलीन’

Tuesday, July 14, 2015

कोई असर नहीं होता।

1.
अपनी हमदर्दी अपने पास बचाकर रखो यारो,
दर्द कहते हैं जिसे उसका कोई घर नहीं होता।
जब तलक हैं साथ मेरे, मेरा दर्द ही अपना हैं,
परायी चीज का इस पर कोई असर नहीं होता।
..............अनिल कुमार 'अलीन'..............
2.
मेरे दर्द ने मुझको मुझसे मिला दिया 'अलीन',
दुआ लबों से भी रूठ जाए तो कोई गम नहीं|
मुद्दतों बाद पिघला हैं यह जज्बात-ए-हिमखंड,
सारी कायनात भी डूब जाये तो कोई गम नहीं।
...............'अनिल कुमार अलीन'..............


मैं वह मुसाफिर हूँ

मैं वह मुसाफिर हूँ जो राही को राह दिखाते-दिखाते अपना रास्ता भूल गया.....अनिल कुमार 'अलीन'

 

उछाल तो दूँ सूरज को

उछाल तो दूँ सूरज को एक ठोकर से अपने 'अलीन'
पर तेरी तरह लोगों को अंधेरो की आदत नहीं
.............अनिल कुमार 'अलीन'................


तुम्हारा भागवान

 

तुम्हारा भागवान तुम्हारी तरह गूँगा-बहरा हैं,
तड़पते दिल की सदा उस तक नहीं जाती।
...........अनिल कुमार 'अलीन'..............

Monday, July 13, 2015

क्या दिन थे वे भी

1.
क्या दिन थे वे भी भीग जाते थे बारिश से,
अब दिन हैं ये भी जल उठते हैं बारिश से।
 2.
यह वही मौसम हैं, बारिश है और मैं भी 'अलीन'
पर खुद को छुपाता जिससे वो मेरा छत नहीं।
3.
अब तो जी में आता है कूद मरु इस बालकनी से,
बारिश भी पराया हुआ जो कभी अपना था.

3.
अब तो मेरे दुःख, मेरे दर्द ही अपने हैं 'अलीन'
वो साँसे छोड़ गयी बाबू जी को जिसे जपना था।

                                                        
     .. ....अनिल कुमार 'अलीन'.......

Sunday, July 12, 2015

माँगना गर है


माँगना गर है तो माँग खुदा से सर उठाकर तू
खुद को गिराकर यूँ हर किसी को सलाम मत कर।
चले हो सफ़र में तो बारिश भी होगी और तूफान भी
मंज़िल पाने से पहले अपना मुकद्दर किसी के नाम मत कर।
खुद को गुनाहगार न समझ मुझ तक आते-आते,
यह जो साजिश है अंधेरों की उसे सरेआम मत कर।
सर की छत जो टूटकर आ गयी तेरे हाथों में,
इलज़ाम अपना मासूम परिंदों के नाम मत कर।
बड़ी मुश्किल से निकलते हैं लोग यहाँ अपने घरों से,
मुझे बेघर ही रहने दे कोई कोई छत नाम मत कर।
.........अनिल कुमार 'अलीन'.....

Friday, July 10, 2015

उस पार का मुसाफिर इस पार तक आया।

उस पार का मुसाफिर इस पार तक आया।

माझी को ढूढ़ता हुआ मझधार तक आया।

बेशक होगा डूबते को तिनके का सहारा

यहाँ मैं कश्ती भी पाकर मार तक आया।

......Missing my father........
....अनिल कुमार 'अलीन'.....

बारिश तुम्हारे छत की भी कोई कम तो न थी


 बारिश तुम्हारे छत की भी कोई कम तो न थी,

जी भर न सका तेरा, भला नशीब क्या करता?

रोक न सका टपकते हुए शज़र से बूंदों को तू ,

गर बह गया आँगन से, भला हबीब क्या करता?

किसके-किसके नशीबों से खुद को कोसेगा तू,...
गर चाह मरने की है फिर रकीब क्या करता ?....

Tuesday, June 9, 2015

वो निहायत ही झूठे है व मक्कार है


१.
क्योंकर यह सितम तुम्हारे साथ होना था,
कि तुम्हारे घर पे आग की वर्षात होना था।
कभी मिले वो मगरूर बदल तो पूंछेंगे,
प्यासी भूमि पे क्या यही इन्साफ होना था?

२.
गर यकीं है खुद बहुत
तो चलो बादलो को ललकार आये।
कि हम सीने पे नहीं दिल पे खाएंगे
बशर्ते वो आग नहीं
अबकी बार शोला बनकर आये।

३.
बड़ी आस लिए फिरते हो उसके साथ का,
बड़े नादाँ हो जो खुद पे भरोसा छोड़ आये हो।

४.
सब कुछ हार के मुहब्बत में जो निःशब्द हो गए,
उनकी ख़ामोशी ही जुबां है गर पढ़ सको तो पढ़ो।
कहाँ तक लाज़िम हैं उन्हें बेवफा कहना अलीन,
दिल की बाते हैं दिल से समझ सको तो पढ़ो।

५.
आ मिल ले जो मुझसे मिलने की ख्वाइश है,
तुम्हारी नहीं, यह वक्त की आजमाइश है।
ख्याल जो भी पाल रखा है मुझको लेकर,
सफ़ेद झूठ है न सच की कोई गुन्जाइश है।
६.
मुझे देखकर जाती रहेगी गलत फहमी तेरी।
अबतलक लोगों को मिलकर मुझसे 
एक बस यही बात समझ आई है।
अलीन कोई कयामत है या फिर
कोई बला आई है।
लाख कर ले जतन मुझे जकड़ने की,
कहाँ कोई परछाई पकड़ में आई है।
बिछा ले तेरे जी में आये जितने प्यादे,
एक चाल हूँ ऐसा जो अब तक समझ न आई है.

७.
कभी दर्द बेचकर हमने दवा खरीदनी चाही।
सुबह से शाम हो गयी और
फिर युहीं जिंदगी तमाम हो गयी,
न गुजरा इधर से कोई खरीददार न कोई राही।

८. 
वो दर्द अपना बेचने को अब भी तैयार है,
बशर्ते बिना दर्द का कोई खरीदार हो।
वो निहायत ही झूठे है व मक्कार है, 
जो कहते हैं एक अलीन ही यहाँ बीमार है।

९. 
क्या कहते हो मियां.....
फिर तो यक़ीनन उसकी जान पर आई है
तबियत का मारा है जो ख़ामोशी छाई है।

१०.
मुझे यकीं था तुममे से कोई आएगा,
पत्थर मारकर घर में छुप जायेगा।

११. 
अब हमने भी ठान रखी है
कि आग पर अपनी जान रखी है।
देखता हूँ कब तक छिपेगा अपने शीशे के मकां  में,
अब तो हाथों में हमने पत्थर उठा रखी है।

१२.
अब हमने भी ठान रखी है
कि आग पर अपना आन रखी है।
देखता हूँ कब तक छिपेगा अपने शीशे के घर में,
अब तो हाथों में हमने पत्थर उठा रखी है।

१३.
मैं तो कुछ और ही हूँ जबकि कुछ और तू समझ बैठा,
हाय अल्लाह तूने धधकते आग को पानी समझ बैठा।

१४.
अभी लूट हमारी देखी ही कहाँ हैं तूने,
जिधर से गुजरता हूँ वो बस्ती कभी बसती नही।
……....... अनिल कुमार 'अलीन'………… 

Monday, June 8, 2015

वो एक आइना जिसमे खुदा का नूर रहता हैं।

 


1.

आईना होकर भी वो खुद से दूर रहता है,
खुद को न पाकर खुद में, मजबूर रहता हैं।
खुद को देखने के लिए उसी को देखते हो तुम,
वो एक आइना जिसमे खुदा का नूर रहता हैं।

2.
जिन राहों से होकर लोग पा लेते हैं अपनी मंजिलें,
उन्हीं राहों में कहीं खुद को ढूढ़ता हूँ मैं. 

३.

क्योंकर यह सितम तुम्हारे साथ होना था,
तुम्हारे दामन में आग की वर्षात होना था।
कभी मिले वो मगरूर बादल तो हम पूंछेंगे,
प्यासी बंजर भूमि पे क्या यही इन्साफ होना था?

4.

किसको पड़ी है साफ़ करने की गली की गंदगी,
वो फरिश्ता ही था जो सब साफ़ कर दिया।
हमारे गुस्ताखियों की सजा हमको मिली इस तरह,
इलज़ाम खुद पर लेकर वो हमे माफ़ कर दिया.....

 5.

मुहब्बत कर ली फिर तो
बात खुलने से क्या डरना?
जब तबियत ही है अपनी,
धड़कते आग से खेलना.........

......… अनिल कुमार 'अलीन'……। 

Friday, May 29, 2015

खुदा नजर आता है अलग

ग़ालिब, इक़बाल और फ़राज़ द्वारा शुरू किये गए सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अगली कड़ी के रूप में खुद को जोड़ने की गुस्ताखी करना चाहूँगा। उम्मीद है आप सभी को मेरी कोशिश पसंद आएगी।
 

                                     



Tuesday, May 26, 2015

जरुरत क्या है?












दिल के जज्बातों को लोगो को समझाने की जरुरत क्या है?
अनमोल मोतियों को सरेआम आखों से लुटाने की जरुरत क्या है?
मुहब्बत हो गयी तो हो गयी छुपाना क्या है?
धधकते आग को अब बुझाने की जरुरत क्या है?
बेईमानों की बस्ती में ईमानदारी का बोलबाला,...
इतनी तकलीफ उठाने की जरुरत क्या है?
खुद को मिटाकर ढूढ़ना किसी को ठीक नहीं,
चिरागों को अन्धरों में बुझाने की जरुरत क्या है?
दिल करता है यकीं करू लोगों की मौका परस्ती पर
मुर्दों से जीने का सबब जानने की जरुरत क्या है?
यकीं करना है तो खुद पर करो अलीन
बेजान पत्थरों को खुदा बनाने की जरुरत क्या है?

..........अनिल कुमार 'अलीन'........

शहर में कैसी हवा चली मुहब्बत की



1.लगें हैं जख्म मगर ,तड़पने का इंतज़ाम नहीं,
  यह बीमारी है ला इलाज़ कोई आम नहीं।

2.जाओ किसी हकीम से मिलो मियाँ।
   हाय अल्लाह तुम्हे कौन सी बीमारी हुई?...

3. तेरे होने से सुकून से कटती जिंदगी
    वरना  यह सफर है तूफानों का 'अलीन '.

४. क्या यह कम है उम्रभर के लिए,
    मंज़िलों से दूर कहीं सफर में रहा.

५. जिंदगी किसी एक की मोहताज़ नहीं
    कि  किसी के जाने से कोई बर्बाद हो जाए .

६. गिला क्योंकर रहे दिलों के दरमियाँ ,
    चाँदनी रात में तारे डूबा नहीं करते.

७.  जिसको देखो कैद करने के फ़िराक़ में है,
      उड़ते पंछियों को
     शहर में कैसी हवा चली मुहब्बत की।

८.  एक रोज पूछा उनसे,
     हँसते हुए आँखों में
     आँसुओ का सबब क्या है?
     वो  मुस्कुराकर बोले,
     पहले यह बताओ  कि
     इसमें अज़ब क्या है?

९. तुम्हारी अहमियत मुझसे भला किसे मालूम है अलीन,
    सब कुछ लुटाकर  यहाँ जो तुम्हें पाया हैं.

१०. दुआ  माँगना हैं तो उठाओ हाथ औरो के लिए,
      मांग के मौत अपना औरों को न रुलाओ यारो.

११. अल्लाह जिंदगी से इतनी हमदर्दी क्यों
      उम्मीद नहीं फिर भी उसी को याद करते हैं.

१२.  किसी के याद में मरने से अच्छा है,
       किसी मरते हुए को बचाओ यारो.

१३.  वयां  कर लेता  हूँ  दिल के जज्बातों को लफ्जों में,
       थमे पलों को पन्नों में शायरी का नाम न दो.

१४.  दिल अगर रखते हो तो धड़कनें दो,
       अपने एहसासों को एक  खूबसूरत नाम दो.
      
१५.  कामयाबी के मायने से अनभ्ग्य हो दोस्त
       वरना एक झूठ को सच का नाम न देते.

१६.  ढूढ़ा यूँ खुद को भुलाकर कि
       आइनों का हम पर ऐतबार न रहा.

१७. नसों में अब भी दौड़ता है लहूँ बनकर,
      झूठा इलज़ाम है कि मैंने उसे ठुकराया है है.

१८.  इश्क में हर कोई खुद को खुद बताता है,
       अब तो मिज़ाजे इश्क लेकर आये  कोई.

१९.  ख़ुदा का शुक्र जो बनाया मुझे हर किसी के लिए,
       किसी एक का हो जाऊ इतना खुद गर्ज़ नहीं.

२०.  कलतलक जो चट्टानों के तरफदार थे अलीन
       आज उन्हें हवाओं की तरह बदलते देखा है.

२१.  किस्से लाख हो मशहूर हक़ीकत  हो नहीं सकते.
   
                .......अनिल कुमार 'अलीन'.......

Thursday, May 21, 2015

एक खूबसूरत गुस्ताख़ी

१.
कितनी खूबसूरत है गुस्ताखी मेरी,
खुद को मिटाकर
तुम्हारे होने का सबब ढूढ़ता हुँ.

२.
अब तो इश्क़ मेरा बाजार नज़र आता है.
कोई इन्सुरेंस तो कोई पिज़्ज़ा लिए आता है.

३.
दोस्ती किसी फ़क़ीर की दुआओं की तरह,
लगे तो हालात बदल जाता है.
न लगे तो कायनात बदल जाता है.



४.
दर्द को निचोड़ कर दवा जो बनाता है.
वह शख्स  यहाँ शायर कहलाता है.
    …अनिल कुमार 'अलीन'…
 

Tuesday, May 19, 2015

मैं न मिटा

मैं मिटा भी तो क्या ख़ाक मिटा कि 

सबकुछ मिटाकर भी मैं न मिटा । 

….. अनिल कुमार 'अलीन'...... 

 

बादलों से धुप

 

इन आँखों से अश्कों को हटा लो 'अलीन'

बादलों से धुप जमीं पर उतरा नहीं करता . 

ख्वाब की ताबीर

यहाँ हर किसी का एक अपना ख्वाब है,

किस ख्वाब की ताबीर हो,

अब तो नींद से जाग जाओ यारों. 

.... अनिल कुमार 'अलीन'… 

 

मंजिल की झलक

   गर मंजिल की झलक हो आँखों में, 

   फिर राही राहों की परवाह नहीं करते।

   ……अनिल कुमार 'अलीन'....... 



 

Monday, May 18, 2015

जज्बात 2

१.
इन बहारों से इतनी दिल्लगी क्यों।
जब उम्मीदें वफ़ा नहीं रखते।


२.
जब हरेक पतझड़ के बाद बहार आनी है।
फिर क्यों न दरख्तों दीवार बदलतें यारों.


३. 
वो साहस ही क्या जो मौसम का मिजाज़ न देख सके।
हमने तो बंजर भूमि में अंकुरित बीजों को देखा है।


4.
वो साहस ही क्या जो मौसम का मिजाज़ न देख सके।
हमने तो बंजर भूमि में अंकुरित बीजों को देखा है।

5.
होरी का भटकना इस बात का साक्षी है कि जीवन उसमे बाकी है
वरना मौसम के भय से मिटटी में दफन हो जाना.


6.
फूल बने ही है खिलने, मुस्कुराने और गिर मिटटी में मिल जाने को
ताकि फिर से किसी पौधे की मुस्कान बन सके।


.              ..........अनिल कुमार 'अलीन'..........
 

Sunday, May 17, 2015

जज्बात

१.
 दोस्ती करने की बात नादानी है,
नफरत करने की बात बेईमानी है।
गुस्सा करने की बात शैतानी  है,
प्यार करने की बात बचकानी है।
क्योंकि...
दोस्ती और प्यार कभी किया नहीं जाता,
यह अलग बात है कि गर हो गया
तो फिर रहा नहीं जाता।
और जहाँ यह दोनों है
वहाँ नफरत और गुस्सा हो नहीं सकता।
दोस्ती जैसे ओंस की बूँदें
जो शुष्क धरा को नम करती है।
और प्यार एक इबादत
जो एक रूह से होकर दूसरे रूह तक जाता।
 
२.
और हम इतने अक्लमंद तो नहीं पर जिस उलझन को देख ले सुलझ जाती है।

३.
जब गुरुर होना खुद पे आम बात है,
फिर भला चाहत तुम्हारी खास कैसे?
नहीं तुम कोई फरेबी हो, चाहत हो नहीं सकते।
चाहत तो इबादत है, इबादत है......
भला इबादत में गुरुर कैसे?......

४.
यदि गुरुर-ए-इश्क है अब भी दुनिया में ,
तो उससे जाकर कह दे कोई,
अब भी जिन्दा है इश्क उसकी चाह में मरने को ।

५.
अजीब बात है हँसते हुए चेहरे और शराबी आखों की,
कि वो नबाबी शान और दोस्तों के लिए जान रखता है।
क्योंकर कोई ऐतबार करे कोई उसकी बातोँ पर 'अलीन'
क्या कोई समंदर में भी सैलाब रखता है.....

५.

कैसे कोई चाहे हकीम-ए-मुहब्बत को,
जन्नत मिलता है यहाँ बीमार हो जाने पर।
ढूढ़ तो लाऊ हकीम एक तेरे खातिर,
पर वो भी बीमार हो जायेगा यहाँ आने पर।....

…………  अनिल कुमार 'अलीन'…………