Sunday, July 12, 2015

माँगना गर है


माँगना गर है तो माँग खुदा से सर उठाकर तू
खुद को गिराकर यूँ हर किसी को सलाम मत कर।
चले हो सफ़र में तो बारिश भी होगी और तूफान भी
मंज़िल पाने से पहले अपना मुकद्दर किसी के नाम मत कर।
खुद को गुनाहगार न समझ मुझ तक आते-आते,
यह जो साजिश है अंधेरों की उसे सरेआम मत कर।
सर की छत जो टूटकर आ गयी तेरे हाथों में,
इलज़ाम अपना मासूम परिंदों के नाम मत कर।
बड़ी मुश्किल से निकलते हैं लोग यहाँ अपने घरों से,
मुझे बेघर ही रहने दे कोई कोई छत नाम मत कर।
.........अनिल कुमार 'अलीन'.....

No comments:

Post a Comment