वो एक आइना जिसमे खुदा का नूर रहता हैं।
1.
आईना होकर भी वो खुद से दूर रहता है,
खुद को न पाकर खुद में, मजबूर रहता हैं।
खुद को देखने के लिए उसी को देखते हो तुम,
वो एक आइना जिसमे खुदा का नूर रहता हैं।
2.
जिन राहों से होकर लोग पा लेते हैं अपनी मंजिलें,
उन्हीं राहों में कहीं खुद को ढूढ़ता हूँ मैं.
३.
क्योंकर यह सितम तुम्हारे साथ होना था,
तुम्हारे दामन में आग की वर्षात होना था।
कभी मिले वो मगरूर बादल तो हम पूंछेंगे,
प्यासी बंजर भूमि पे क्या यही इन्साफ होना था?
4.
किसको पड़ी है साफ़ करने की गली की गंदगी,
वो फरिश्ता ही था जो सब साफ़ कर दिया।
हमारे गुस्ताखियों की सजा हमको मिली इस तरह,
इलज़ाम खुद पर लेकर वो हमे माफ़ कर दिया.....
5.
मुहब्बत कर ली फिर तो
बात खुलने से क्या डरना?
जब तबियत ही है अपनी,
धड़कते आग से खेलना.........
......… अनिल कुमार 'अलीन'……।
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