Friday, May 29, 2015

खुदा नजर आता है अलग

ग़ालिब, इक़बाल और फ़राज़ द्वारा शुरू किये गए सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अगली कड़ी के रूप में खुद को जोड़ने की गुस्ताखी करना चाहूँगा। उम्मीद है आप सभी को मेरी कोशिश पसंद आएगी।
 

                                     



Tuesday, May 26, 2015

जरुरत क्या है?












दिल के जज्बातों को लोगो को समझाने की जरुरत क्या है?
अनमोल मोतियों को सरेआम आखों से लुटाने की जरुरत क्या है?
मुहब्बत हो गयी तो हो गयी छुपाना क्या है?
धधकते आग को अब बुझाने की जरुरत क्या है?
बेईमानों की बस्ती में ईमानदारी का बोलबाला,...
इतनी तकलीफ उठाने की जरुरत क्या है?
खुद को मिटाकर ढूढ़ना किसी को ठीक नहीं,
चिरागों को अन्धरों में बुझाने की जरुरत क्या है?
दिल करता है यकीं करू लोगों की मौका परस्ती पर
मुर्दों से जीने का सबब जानने की जरुरत क्या है?
यकीं करना है तो खुद पर करो अलीन
बेजान पत्थरों को खुदा बनाने की जरुरत क्या है?

..........अनिल कुमार 'अलीन'........

शहर में कैसी हवा चली मुहब्बत की



1.लगें हैं जख्म मगर ,तड़पने का इंतज़ाम नहीं,
  यह बीमारी है ला इलाज़ कोई आम नहीं।

2.जाओ किसी हकीम से मिलो मियाँ।
   हाय अल्लाह तुम्हे कौन सी बीमारी हुई?...

3. तेरे होने से सुकून से कटती जिंदगी
    वरना  यह सफर है तूफानों का 'अलीन '.

४. क्या यह कम है उम्रभर के लिए,
    मंज़िलों से दूर कहीं सफर में रहा.

५. जिंदगी किसी एक की मोहताज़ नहीं
    कि  किसी के जाने से कोई बर्बाद हो जाए .

६. गिला क्योंकर रहे दिलों के दरमियाँ ,
    चाँदनी रात में तारे डूबा नहीं करते.

७.  जिसको देखो कैद करने के फ़िराक़ में है,
      उड़ते पंछियों को
     शहर में कैसी हवा चली मुहब्बत की।

८.  एक रोज पूछा उनसे,
     हँसते हुए आँखों में
     आँसुओ का सबब क्या है?
     वो  मुस्कुराकर बोले,
     पहले यह बताओ  कि
     इसमें अज़ब क्या है?

९. तुम्हारी अहमियत मुझसे भला किसे मालूम है अलीन,
    सब कुछ लुटाकर  यहाँ जो तुम्हें पाया हैं.

१०. दुआ  माँगना हैं तो उठाओ हाथ औरो के लिए,
      मांग के मौत अपना औरों को न रुलाओ यारो.

११. अल्लाह जिंदगी से इतनी हमदर्दी क्यों
      उम्मीद नहीं फिर भी उसी को याद करते हैं.

१२.  किसी के याद में मरने से अच्छा है,
       किसी मरते हुए को बचाओ यारो.

१३.  वयां  कर लेता  हूँ  दिल के जज्बातों को लफ्जों में,
       थमे पलों को पन्नों में शायरी का नाम न दो.

१४.  दिल अगर रखते हो तो धड़कनें दो,
       अपने एहसासों को एक  खूबसूरत नाम दो.
      
१५.  कामयाबी के मायने से अनभ्ग्य हो दोस्त
       वरना एक झूठ को सच का नाम न देते.

१६.  ढूढ़ा यूँ खुद को भुलाकर कि
       आइनों का हम पर ऐतबार न रहा.

१७. नसों में अब भी दौड़ता है लहूँ बनकर,
      झूठा इलज़ाम है कि मैंने उसे ठुकराया है है.

१८.  इश्क में हर कोई खुद को खुद बताता है,
       अब तो मिज़ाजे इश्क लेकर आये  कोई.

१९.  ख़ुदा का शुक्र जो बनाया मुझे हर किसी के लिए,
       किसी एक का हो जाऊ इतना खुद गर्ज़ नहीं.

२०.  कलतलक जो चट्टानों के तरफदार थे अलीन
       आज उन्हें हवाओं की तरह बदलते देखा है.

२१.  किस्से लाख हो मशहूर हक़ीकत  हो नहीं सकते.
   
                .......अनिल कुमार 'अलीन'.......

Thursday, May 21, 2015

एक खूबसूरत गुस्ताख़ी

१.
कितनी खूबसूरत है गुस्ताखी मेरी,
खुद को मिटाकर
तुम्हारे होने का सबब ढूढ़ता हुँ.

२.
अब तो इश्क़ मेरा बाजार नज़र आता है.
कोई इन्सुरेंस तो कोई पिज़्ज़ा लिए आता है.

३.
दोस्ती किसी फ़क़ीर की दुआओं की तरह,
लगे तो हालात बदल जाता है.
न लगे तो कायनात बदल जाता है.



४.
दर्द को निचोड़ कर दवा जो बनाता है.
वह शख्स  यहाँ शायर कहलाता है.
    …अनिल कुमार 'अलीन'…
 

Tuesday, May 19, 2015

मैं न मिटा

मैं मिटा भी तो क्या ख़ाक मिटा कि 

सबकुछ मिटाकर भी मैं न मिटा । 

….. अनिल कुमार 'अलीन'...... 

 

बादलों से धुप

 

इन आँखों से अश्कों को हटा लो 'अलीन'

बादलों से धुप जमीं पर उतरा नहीं करता . 

ख्वाब की ताबीर

यहाँ हर किसी का एक अपना ख्वाब है,

किस ख्वाब की ताबीर हो,

अब तो नींद से जाग जाओ यारों. 

.... अनिल कुमार 'अलीन'… 

 

मंजिल की झलक

   गर मंजिल की झलक हो आँखों में, 

   फिर राही राहों की परवाह नहीं करते।

   ……अनिल कुमार 'अलीन'....... 



 

Monday, May 18, 2015

जज्बात 2

१.
इन बहारों से इतनी दिल्लगी क्यों।
जब उम्मीदें वफ़ा नहीं रखते।


२.
जब हरेक पतझड़ के बाद बहार आनी है।
फिर क्यों न दरख्तों दीवार बदलतें यारों.


३. 
वो साहस ही क्या जो मौसम का मिजाज़ न देख सके।
हमने तो बंजर भूमि में अंकुरित बीजों को देखा है।


4.
वो साहस ही क्या जो मौसम का मिजाज़ न देख सके।
हमने तो बंजर भूमि में अंकुरित बीजों को देखा है।

5.
होरी का भटकना इस बात का साक्षी है कि जीवन उसमे बाकी है
वरना मौसम के भय से मिटटी में दफन हो जाना.


6.
फूल बने ही है खिलने, मुस्कुराने और गिर मिटटी में मिल जाने को
ताकि फिर से किसी पौधे की मुस्कान बन सके।


.              ..........अनिल कुमार 'अलीन'..........
 

Sunday, May 17, 2015

जज्बात

१.
 दोस्ती करने की बात नादानी है,
नफरत करने की बात बेईमानी है।
गुस्सा करने की बात शैतानी  है,
प्यार करने की बात बचकानी है।
क्योंकि...
दोस्ती और प्यार कभी किया नहीं जाता,
यह अलग बात है कि गर हो गया
तो फिर रहा नहीं जाता।
और जहाँ यह दोनों है
वहाँ नफरत और गुस्सा हो नहीं सकता।
दोस्ती जैसे ओंस की बूँदें
जो शुष्क धरा को नम करती है।
और प्यार एक इबादत
जो एक रूह से होकर दूसरे रूह तक जाता।
 
२.
और हम इतने अक्लमंद तो नहीं पर जिस उलझन को देख ले सुलझ जाती है।

३.
जब गुरुर होना खुद पे आम बात है,
फिर भला चाहत तुम्हारी खास कैसे?
नहीं तुम कोई फरेबी हो, चाहत हो नहीं सकते।
चाहत तो इबादत है, इबादत है......
भला इबादत में गुरुर कैसे?......

४.
यदि गुरुर-ए-इश्क है अब भी दुनिया में ,
तो उससे जाकर कह दे कोई,
अब भी जिन्दा है इश्क उसकी चाह में मरने को ।

५.
अजीब बात है हँसते हुए चेहरे और शराबी आखों की,
कि वो नबाबी शान और दोस्तों के लिए जान रखता है।
क्योंकर कोई ऐतबार करे कोई उसकी बातोँ पर 'अलीन'
क्या कोई समंदर में भी सैलाब रखता है.....

५.

कैसे कोई चाहे हकीम-ए-मुहब्बत को,
जन्नत मिलता है यहाँ बीमार हो जाने पर।
ढूढ़ तो लाऊ हकीम एक तेरे खातिर,
पर वो भी बीमार हो जायेगा यहाँ आने पर।....

…………  अनिल कुमार 'अलीन'…………