1.
क्या दिन थे वे भी भीग जाते थे बारिश से,
अब दिन हैं ये भी जल उठते हैं बारिश से।
2.
यह वही मौसम हैं, बारिश है और मैं भी 'अलीन'
पर खुद को छुपाता जिससे वो मेरा छत नहीं।3.
अब तो जी में आता है कूद मरु इस बालकनी से,
बारिश भी पराया हुआ जो कभी अपना था.
3.
अब तो मेरे दुःख, मेरे दर्द ही अपने हैं 'अलीन'
वो साँसे छोड़ गयी बाबू जी को जिसे जपना था।
.. ....अनिल कुमार 'अलीन'.......
क्या दिन थे वे भी भीग जाते थे बारिश से,
अब दिन हैं ये भी जल उठते हैं बारिश से।
2.
यह वही मौसम हैं, बारिश है और मैं भी 'अलीन'
पर खुद को छुपाता जिससे वो मेरा छत नहीं।3.
अब तो जी में आता है कूद मरु इस बालकनी से,
बारिश भी पराया हुआ जो कभी अपना था.
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अब तो मेरे दुःख, मेरे दर्द ही अपने हैं 'अलीन'
वो साँसे छोड़ गयी बाबू जी को जिसे जपना था।
.. ....अनिल कुमार 'अलीन'.......
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