Sunday, August 9, 2015

तुम्हारी रचनाएँ तुम्हारी ही तरह झूठी है

गर लाइक करते हो कि मैं भी करूँगा एक दिन,
फिर तो थक जाओगे एक दिन यूँ ही करते-करते।

तुम्हारे जिन्दा होने की सबब गर कुछ हो तो लू
कमबख्त यहाँ साँस भी लेते हो तो डरते-डरते।

वक्त रहते बंद करो साहित्य में खुद को गिराना
वरना मर जाओगे एक दिन यूँ ही मरते-मरते ।

लाख ढक के रखो मर्यादा में इस गंदगी को  तुम
ऊब जाओगे एक दिन खुद से इसे करते-करते।

तुम्हारी रचनाएँ तुम्हारी ही तरह झूठी है अलीन
कीड़े पड़ जायेंगे इसमें विचारों के ठहरते-ठहरते।
                                                                                       ……अनिल कुमार 'अलीन'……  

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