मिज़ाज-ए-इश्क
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Friday, May 29, 2015
खुदा नजर आता है अलग
ग़ालिब, इक़बाल और फ़राज़ द्वारा शुरू किये गए सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अगली कड़ी के रूप में खुद को जोड़ने की गुस्ताखी करना चाहूँगा। उम्मीद है आप सभी को मेरी कोशिश पसंद आएगी।
1 comment:
मन के - मनके
May 29, 2015 at 8:03 AM
sundar takaraar
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sundar takaraar
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