बारिश तुम्हारे छत की भी कोई कम तो न थी
बारिश तुम्हारे छत की भी कोई कम तो न थी,
जी भर न सका तेरा, भला नशीब क्या करता?
रोक न सका टपकते हुए शज़र से बूंदों को तू ,
गर बह गया आँगन से, भला हबीब क्या करता?
किसके-किसके नशीबों से खुद को कोसेगा तू,...
गर चाह मरने की है फिर रकीब क्या करता ?....
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