Thursday, May 23, 2019

मुझे मालूम है...😢😢😢

मुझे मालूम है
फासीवादी ताकतें
सत्ता पर आसीन  हो चुकी हैं
और सत्ता पूँजीवादियों की
रखैल बन चुकी है;
प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया
इनके बिस्तर गर्म करने में लगी हैं
ताकि ये सभी मिलकर
हर रोज एक नई ऊर्जा के साथ
हम मेहनतकशों के
माँस को गलाकर
हमारे खून से गारा तैयार कर
हमारे हड्डियों से
अपने पूँजीवादी रूपी भवन को
मजबूत कर सके।
मुझे मालूम है
यह सदी के सबसे बुरे दिन है
जिसे हम पर थोपा गया है
ये सड़के, बिजली, आवास
एक हसीन धोखा है
जिसके बोझ तले
आने वाली पीढ़ियाँ
रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के अभाव में
भूख, शोषण और बीमारियों से
मरने वाली है;
यह सब इसलिए
ताकि वे कहीं दूर बैठें
आलीशान भवनों में
हमारे मौत का व्यवसाय कर सके।
मुझे मालूम है
हमारे सपनों को
बदले की चिंगारियों से
भर दिया जाएगा,
उम्मीदों को लहुँलुहान
कर दिया जाएगा
बुनियादी मुद्दों को
उठाने वाले हर शख़्स को
देशद्रोही, आतंकी कहकर
जेलों में डाला जाएगा,
सड़को पर उतरने वालों
पर गोलियाँ चलायी जाएगी,
नफ़रत का बीज़ बोकर
लोगों को जाति-धर्म के नाम पर
एक-दूसरे के खिलाफ़
खड़ा किया जाएगा
ताकि हम अपने बुनियादी
मुद्दों की बात न कर सके।
मुझे मालूम है
सिर्फ़ मेहनतकश ही नहीं
बल्कि जवान सरहदों पर
किसान खेतों में मारे जाएंगे
आखिरकार सुरक्षित कौन है?
राष्ट्रवाद का मायने, विकास
और अच्छे दिन के नारे इसलिए हैं
ताकि उनके सत्ता और वर्चस्व
को कोई चुनौती न दे सके।
मुझे मालूम है
हमे अपने अधिकारों को
पाने के लिए भारी
कीमत चुकानी होगी,
हम मरने से पहले मारे जाएंगे
हमारी फ़रियाद हम तक नहीं आती
भला उन तक खाक जाएगी,
हमारे विद्रोह संवैधानिक
रूप से दबा दिये जाएंगे
ताकि हमारे अपने ही
हमारी मौत पर अफ़सोस न कर सके।
मुझे मालूम है
फिर से कोई संतोषी
भात-भात कहकर मरने
वाली है,
अभी बहुतों अख़लाक़
मोब लिंचिंग में मारे जाएंगे,
हज़ारों रोहित वेमुला
फ़ाँसी लगायेंगे,
नवजात शिशु ऑक्सीजन
की कमी से मारे जाएंगे,
छेड़खानी का विरोध करने
वाली हमारी बहन-बेटियों पर
तंज कसे जाएंगे,
स्त्री सुरक्षा की
माँग करने वाली औरतों
पर लाठियाँ बरसायी जाएगी,
मासूम बच्चियों के बलात्कार कर
बेरहमी से मार दिया जाएगा,
सैकड़ों दाभोलकर, कलबुर्गी,
पानसरे और गौरी लंकेश
की हत्या इसलिए कर दी जाएगी
ताकि वे हमें सचेत न कर सके
हम मुरदों में जान न डाल सके।
मुझे मालूम है
मेरे रगों का लहूँ
आँखों से आँसू बनकर बहने वाला है
किन्तु आख़िरी साँस तक
इस कानूनी तानाशाही और आतंकवाद
के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करना है
इस घने अँधेरे में
युहीं दीपक जलते रहेंगे
बुझते रहेंगे
किन्तु तूफानों से लौ का
संघर्ष अनवरत चलता रहेगा
ताकि इन अँधेरों को हराकर
अपने आने वाले पीढ़ियों के लिए
उजाला छोड़ सके....© अनिल कुमार 'अलीन', 11:45 pm, 23/05/2019

Tuesday, April 3, 2018

चाँद खफ़ा खफ़ा रहता है मुझसे

चाँद खफ़ा खफ़ा रहता है मुझसे
उसका गुरूर जो तुमने तोडा है।
एक-एक करके तारे भी रूठ गए
हमने नाता जो तुमसे जोड़ा है।
...अनिल कुमार 'अलीन'..... 



Saturday, August 19, 2017

खिड़कियाँ आज भी खुलती हैं

खिड़कियाँ आज भी खुलती हैं,
पर वो पहले वाली बात कहाँ?

वो एक हशीन रात थी,
अब मेरे नशीब में वैसी रात कहाँ ?

यूं तो मिलने को रोज मिलते हैं,
तबियत मिले वो मुलाकात कहाँ ?

फ़र्क दिन-रात का हुआ मुश्किल है,
सुकून से सो सकू वो रात कहाँ ?

क्योंकर सुनेंगे किस्से दादी-नानी के,
आज के बच्चों में ज़ज्बात कहाँ ?

मौजूदा दौड़ में सभी दुल्हें हैं,
साथ चल सके अब वो बारात कहाँ ?

                   ...... ....... सूफ़ी ध्यान श्री

Sunday, June 5, 2016

जुदा होके उनसे आज मैं ख़ुदा हो गया

जुदा होके उनसे आज मैं ख़ुदा हो गया।
था जो ज़र्रा , वो अब आफ़ताब  हो गया।
खिसकी जमी और मैं आसमाँ हो गया।
 हैरत है कि 'अलीन' क्या से क्या हो गया ?

                                    अनिल कुमार 'अलीन'
                  










(चित्र गूगल इमेज साभार)