तालीम लेकर लोग बेकार बैठे हैं,
घर-घर में लोग बेरोजगार बैठे हैं,
शराफ़त की तन पर ओढ़े हुए चादर,
बड़ी आस लगाए होशियार बैठे हैं.
दूसरों की खबर नहीं अपनी गरज लिए,
अब शहर और गलियों में बेशुमार बैठे हैं,
काफिलो सी आज गुजरी है जिंदगी,
चौखट पे दस्तक दिए हजार बैठे हैं,
कहने को है बहुत पर कैसे कहे कोई,
गर्दन के ऊपर अब तो तलवार बैठे हैं,
एक बात तुमसे कहनी है हमको ‘अलीन’
एक अनार पर हजार बीमार बैठे हैं
……….०६/१२/२००४ अनिल कुमार ‘अलीन’
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