Thursday, April 24, 2014

हैरान हूँ उसकी बातों पर

हैरान हूँ उसकी बातों पर,
मकान शीशे का रखता है,
पर पत्थर की बात करता है.
 
जाने क्या सूझी है उसको,
हाथ काँपते है  उसके
पर तलवार की बात करता है.
 
यही नहीं, सुना है आजकल
नेवलों के नगर में घुसकर,
कमबख्त साँप की बात करता है. 
 
कितनी गलतफहमी है  उसे,
समन्दर के लहरों से
आग की बात करता है.
 
रोना आता है उसकी तबियत पर,
गुनाहों के कीचड़ में पलने वाला
'अलीन' से परिणाम की बात करता है. 
    ---अनिल कुमार 'अलीन'---

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